मुस्कान लिए फिरता हूं-muskan liye firta hun -Hindi Ghazal-best hindi Ghazal by ℕ 𝕂𝕦𝕞𝕒𝕣
दिल में अपने हजारों अरमान लिए फिरता हूं।
मैं बेईमानो की बस्ती में ईमान लिए फिरता हूं।
खरीदार मिले तो सौदा करू अपने दिल का,
मैं साथ मेरे इश्क का सामान लिए फिरता हूं।
मिट्टी हो या आसमां हर चीज़ का कारोबार है,
मैं भी अपने सपनों की दुकान लिए फिरता हूं।
जो दिखता हूं, वो मेरी शख्सियत नहीं है,
खुद के अंदर दूसरा इंसान लिए फिरता हूं।
ये सुन ले मुझे हवा का, झोका कहने वाले,
साथ में मैं भी अपने, तूफान लिए फिरता हूं।
हो हिम्मत तो कोई आकर छीन ले मुझसे,
हाथो में रखकर अपनी जान लिए फिरता हूं।
कहने को वैसे तो हैं, उलझन कई, "कुमार"
फिर भी अपने होटों पे मुस्कान लिए फिरता हूं।
©N Kumar "Sahab"
fiza Tanvi
15-Dec-2021 07:11 PM
Good
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Seema Priyadarshini sahay
15-Dec-2021 04:36 PM
बहुत खूब
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